• સર્વજ્ઞ ભગવાને કહેલું સત્ય સાંભળવા માગતો હો તો જેવા પરમાત્મા પૂર્ણ પવિત્ર છે તેવો તું પણ છો તેની ‘હા’ પાડ; ‘ના’ પાડીશ નહિ. ‘હા’ માંથી ‘હા’ આવશે; પૂર્ણનો આદર કરનાર પૂર્ણ થઈ જશે.

    -  પૂજ્ય ગુરુદેવશ્રી નાં વચનામૃત: બોલ-૧૧૬


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वीतराग सत्संग

 

अनंत प्रकार के दुःखो से व्याकुल जीवो को दुःख से छूटने की इच्छा होते हुए भी उस से मुक्त नहीं हो पा रहे है, इसका क्या कारण है? क्या आपके अंतर में भी ऐसा ही प्रश्न उठता है? क्या आप समाधान की खोज में हो? सबसे पहले अगर दुःखका मूल कारण यथार्थरूपसे जाननेमें न आए तो उसे दूर करनेके लिये चाहे जो प्रयत्न किए जाये, तो भी दुःखका क्षय नहीं हो सकता।

 

दुःख क्या है? उसके मूल कारण क्या हैं? और वे किस तरह मिट सकते हैं? इन सब प्रश्नो का यथार्थ समाधान ‘श्री वीतराग’ भगवंतो ने बताया है।

 

‘वीतराग’ वो है जिन्हें कोई राग या द्वेष नहीं है, जो कोई भी पदार्थ या प्राणी को पसंद या नापसंद किये बिना उन से अलिप्त हैं, तटस्थ है। 'सत्’ यानि अपने शुद्धात्मा को जिसने प्रगट किया है, अनुभव किया है और सत का ‘संग’ करना वो सत्संग है। अनंत तीर्थंकरो द्वारा प्रतिपादित जो सत्य मार्ग है उसी मार्ग को वीतराग सत्संग में ज्ञानी अपने अनुभव द्वारा हमारे हित के लिये पुनः प्रकाशित करते है।

 

इस साईट पर उपलब्ध सभी वचन, प्रवचन, उद्धरण, आगम और शास्त्र आपको अपने समीप ले जायेंगे। मात्र इनमे आए हुए बोध का मध्यस्थ होकर परिचय करने से, आधार लेने से कई प्रश्नो का उत्तर मिलेगा, जिससे आपकी भ्रमणा दूर हो सकेगी।

 

अध्यात्मिक उन्नति के लिए आवश्यक सभी उपकरण यहाँ उपलब्ध हैं। आपकी इस अद्भुत यात्रा का हिस्सा बनकर हमें अपार ख़ुशी होगी। यदि आपको जानकारी लाभकारी लगे तो इसका प्रचार अवश्य करें।

 

कृपया अपने विचार, प्रतिक्रिया व सुझाव को नीचे लिखकर हमारे पास पहुचाये।

Vitrag Satsang

 

When the student is ready, the teacher will appear.

 

They say, when one has an internal calling, a deep yearning for spiritual upliftment, and is surrounded by questions like ‘Who am I? Where did I come from and where will I go from here? Why does my search for happiness and peace never stop? When I literally have everything that I would want for a comfortable living, why do I still feel incomplete?’; then one has begun his quest for true, ever-lasting happiness. And thus, quintessentially of a Master, Spiritual Teacher or a Guru, who has found it and can teach him how to achieve it.

 

Vitrag means the One without any like or dislike, (or having no raag or dwesh), who is perfectly detached and neutral to all things and beings. Sat means the One in whom the Truth has manifested and Sang means being in company of such a realized Soul. Vitrag Satsang brings together the teachings of such enlightened beings, Tirthankars or Kevali Bhagwaan as understood, internalized, experienced and then propounded by Gnanis, – self realized souls, purely for the benefit of us all.

 

We welcome you to assess all the information on this site with an open, unbiased mind. Each excerpt, quotes, discourses, any of Agams or Shastras available on this site has the power of reckoning with your inner self. Mere dwelling on the teachings and you will have removed so many misunderstandings and will find answers to questions unanswered.

 

All the necessary tools for spiritual advancement have been made available here. We are happy to be a part of your wonderful journey and request you to spread the word if you find the information beneficial.

 

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